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चंडीगढ़: हरियाणा और पंजाब हाई कोर्ट ने एक बच्ची से रेप और हत्या के दोषी व्यक्ति की फांसी की सजा बरकरार रखी है। गुरुग्राम में 2018 में हुई इस वीभत्स घटना के बाद दोषी पड़ोसी को निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट ने इस फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि यह मामला 'दुर्लभतम मामलों' में से एक है। दोषी ने बच्ची का अपहरण कर बलात्कार किया और फिर उसकी हत्या कर दी। सीसीटीवी फुटेज और दोषी के बयान ने अदालत के फैसले में अहम भूमिका निभाई। पीड़िता के परिवार को 10 लाख रुपये मुआवजे का भी आदेश दिया गया है।दुकान में मिली थी बच्ची की लाश
गुरुग्राम के सेक्टर 65 में नवंबर 2018 में एक बच्ची की लाश खाली दुकान में मिली थी। पुलिस को कंट्रोल रूम से सूचना मिली थी। जांच में पता चला कि पड़ोस में रहने वाले एक व्यक्ति ने बच्ची का अपहरण किया, उसका बलात्कार किया और फिर उसकी हत्या कर दी। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (POCSO एक्ट) ने दोषी को फांसी की सजा सुनाई थी। इस सजा की पुष्टि के लिए मामला हाई कोर्ट भेजा गया था।
दोषी की याचिका की खारिज
जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए दोषी की अपील खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि यह मामला एक बच्ची की नृशंस हत्या का है, वह भी उसके साथ बलात्कार करने के बाद। यह दोषी के अमानवीय और राक्षसी व्यवहार को दर्शाता है। मौत की सजा उचित है। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले से सहमति जताते हुए कहा कि यह दोषी के अमानवीय, राक्षसी व्यवहार को दर्शाता है।
दोषी के वकील ने दिया था ये तर्क
दोषी के वकील ने तर्क दिया था कि इस मामले में फांसी की सजा नहीं दी जानी चाहिए और उम्रकैद की सजा पर्याप्त होगी। लेकिन अदालत ने इस तर्क को खारिज कर दिया। अदालत ने जिलाधिकारी को फांसी देने वाले व्यक्ति को नियुक्त करने और वैधानिक अपील अवधि के बाद फांसी की सजा को लागू करने का कार्यक्रम तय करने का निर्देश दिया। निचली अदालत ने दोषी पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया था, जो पीड़िता के पिता को दिया जाना था। इसके अलावा, पीड़िता के माता-पिता को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी आदेश दिया गया था, जो महिला पीड़ित मुआवजा कोष से दिया जाएगा।
गुरुग्राम के सेक्टर 65 में नवंबर 2018 में एक बच्ची की लाश खाली दुकान में मिली थी। पुलिस को कंट्रोल रूम से सूचना मिली थी। जांच में पता चला कि पड़ोस में रहने वाले एक व्यक्ति ने बच्ची का अपहरण किया, उसका बलात्कार किया और फिर उसकी हत्या कर दी। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (POCSO एक्ट) ने दोषी को फांसी की सजा सुनाई थी। इस सजा की पुष्टि के लिए मामला हाई कोर्ट भेजा गया था।
दोषी की याचिका की खारिज
जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए दोषी की अपील खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि यह मामला एक बच्ची की नृशंस हत्या का है, वह भी उसके साथ बलात्कार करने के बाद। यह दोषी के अमानवीय और राक्षसी व्यवहार को दर्शाता है। मौत की सजा उचित है। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले से सहमति जताते हुए कहा कि यह दोषी के अमानवीय, राक्षसी व्यवहार को दर्शाता है।
दोषी के वकील ने दिया था ये तर्क
दोषी के वकील ने तर्क दिया था कि इस मामले में फांसी की सजा नहीं दी जानी चाहिए और उम्रकैद की सजा पर्याप्त होगी। लेकिन अदालत ने इस तर्क को खारिज कर दिया। अदालत ने जिलाधिकारी को फांसी देने वाले व्यक्ति को नियुक्त करने और वैधानिक अपील अवधि के बाद फांसी की सजा को लागू करने का कार्यक्रम तय करने का निर्देश दिया। निचली अदालत ने दोषी पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया था, जो पीड़िता के पिता को दिया जाना था। इसके अलावा, पीड़िता के माता-पिता को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी आदेश दिया गया था, जो महिला पीड़ित मुआवजा कोष से दिया जाएगा।
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